माँ का मांस खाने की दौड़ लगी है
पुरस्कार लौटने की हौड़ लगी है
तथाकथित बुद्धिजीवीयों का दम घुट रहा है
देश का माहौल असहिष्णु हो रहा है।
क्यो लोग सच को सच कह रहे हैं
बम और बंदूक वालों को आतंकवादी कह रहे
हैं
मजहब
के आधार पर भेद भाव हो रहा है
देश का माहौल असहिष्णु हो रहा है।
जो सिपाही और सैनिक मरे वो गलत भी तो
हो सकते हैं
पाकिस्तान से आने वाले भटके हुए मासूम भी हो सकते हैं
एन काउंटर मे शरीफों का कत्ल हो रहा है
देश का माहौल असहिष्णु हो रहा है।
मेरे पास लौटने को कोई पुरस्कार नहीं
है
मेरे अयोग्यता है की मेरा मन चाटुकार
नहीं है
जो पहले से नंगा था फिर से नंगा हो रहा है
देश का माहौल असहिष्णु हो रहा है।
कुछ लोग शब्दों से व्यभिचार कर लेते थे
जमीर बेच कर पेट भर लेते थे
रीढ़ विहीन लोगों का कद घट रहा है
देश का माहौल असहिष्णु हो रहा है।
कोई तो बोलो, की देश रहेगा तो तुम रहोगे
जब तक यह असहिष्णुता है बोलते रहोगे
इस नौटंकी का क्या वजीफा मिल रहा है?
देश का माहौल असहिष्णु हो रहा है।
· डॉ बजरंग सोनी